What is hypothesis ? Write its characteristics ? उपकल्पना का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, विशेषताएं
उपकल्पना या परिकल्पना का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, विशेषताएं
उपकल्पना या परिकल्पना का अर्थ (parikalpana kiya hai)
वह चिंतन जो अनुसंधान के पूर्व किया जाता है, परिकल्पना या उपकल्पना कहा जाता है। वैज्ञानिक पद्धति के विभिन्न चरणों मे उपकल्पना का प्रथम स्थान आता हैं। यह वैज्ञानिक मान्यता है कि परिकल्पना (उपकल्पना) से ही अध्ययन शुरू होता है। तथा उपकल्पना के ही साथ इसका समापन होता है। इस प्रकार सामाजिक अनुसंधान मे उपकल्पना का अत्यधिक महत्व होता हैं।
उपकल्पना
आज हम इस लेख मे उपकल्पना या परिकल्पना की परिभाषा, प्रकार और विशेषताएं जानेगें।
उपकल्पना की सहायता से हम जीवन के अपरिचित क्षेत्र मे प्रवेश करते है और उस क्षेत्र से सम्बंधित वास्तविक तथ्यों को प्रकाश मे लाते है। उपकल्पना के द्वारा हमे समस्या की प्रारम्भिक जानकारी प्राप्त होती है। जिसकी सहायता से हम अपने अनुसंधान कार्यक्रम की रूपरेखा का निर्धारण करते है। अनुसंधान एक लम्बी यात्रा होती हैं। जिस बिन्दु से हम इस यात्रा को प्रारंभ कहते है, उसी बिन्दु को उपकल्पना के नाम से सम्बोधित करते है।
उपकल्पना या परिकल्पना की परिभाषा (parikalpana ki paribhasha)
एडवर्ड के अनुसार “उपकल्पना दो या दो से अधिक चरों के सम्भाव्य सम्बन्ध के विषय मे कथन होता है, यह एक प्रश्न का ऐसा प्रयोग उत्तर होता है कि जिससे चरों के सम्बन्ध का पता लगता है।
लुण्डबर्ग “एक उपकल्पना एक सामयिक या कामचलाऊ सामान्यीकरण है, जिसके वैधता की जाँच शेष रहती है।
करलिंगर “उपकल्पना दो या अधिक चल राशियों अथवा चरों के सम्बंधों का कथन है।
गुडे तथा स्केट्स “उपकल्पना एक अनुमान है कि जिसे अन्तिम अथवा अस्थायी रूप से किसी अवलोकित तथ्य अथवा दशाओं की व्याख्या हेतु स्वीकार किया गया हो एवं अन्वेषण को आगे पथ-प्रदर्शन प्राप्त होता है।”
परिकल्पना या उपकल्पना के प्रकार (parikalpana ke pirkar)
मैकगुइगन ने अनुभवाश्रित उपकल्पनाओं को दो भागों मे विभाजित किया है—
1. सार्वभौमिक उपकल्पनाएँ (परिकल्पनाएं)
सार्वभौमिक उपकल्पनाएँ वे है, जिनका अध्ययन किया जाने वाला चर सभी समय और सभी स्थान पर उपस्थित रहता है।
2. अस्तित्ववादी उपकल्पनाएँ (परिकल्पनाएँ)
ऐसी उपकल्पनाएँ वे है, जो एक मामले में चरों के अस्तित्व का निर्धारण कर सके।
हेज ने दो प्रकार की उपकल्पनाएँ बतलाई है—
1. सरल उपकल्पना (परिकल्पना)
इसमे सामान्य उपकल्पना आती है तथा किन्ही चरों के बीच सह-सम्बन्ध की स्थापना की जाती है।
2. मिश्रित उपकल्पना (परिकल्पना)
मिश्रित उपकल्पना वह है, जिसमे चरो की संख्या एक से अधिक हो। इनमे सह-सम्बन्ध सांख्यिकी की सहायता से ज्ञात किए जाते हैं।
परिकल्पना या उपकल्पना की विशेषताएं (parikalpana ki visheshta)
अनुसंधान की सफलता का आधार प्रायः यह होता है कि उसकी उपकल्पना का कितनी सावधानीपूर्वक किया गया है। एक अच्छी उपकल्पना मे निम्नलिखित विशेषताएं होनी चाहिए—-
1. समस्या का पर्याप्त उत्तर
अच्छी उपकल्पना से समस्याओं के उत्तर प्राप्त करने मे सुविधा और सरलता होती है। उपकल्पना इस प्रकार होनी चाहिए, जो समस्या के समाधान मे पर्याप्त उपयोग हो।
2. मूल समस्या से संबद्ध
कई बार अध्ययनकर्ता उपकल्पनाओं के निर्माण मे मूल समस्या से गौण महत्व वाले पक्षों को उपकल्पना के साथ संयुक्त करता है। ऐसा करना अध्ययन की दुष्टि से अनुचित है। चुने गए विषय के मुख्य-मुख्य पक्षों से ही उपकल्पनाओं का संबंध होना चाहिए ताकि अध्ययन मे विशिष्टता आ सके।
3. विशिष्टता
उपकल्पना को अपने मे विशिष्टता लिए हुए होना चाहिए। उसे अत्यंत विस्तृत नही होना चाहिए। विशिष्टता के आधार पर ही समस्या का स्पष्ट और गहन अध्ययन किया जा सकता है।
4. यंत्रों की प्राप्तता
ऐसी उपकल्पना का चुनाव करना चाहिए जिसके परीक्षण के लिए यंत्र उपलब्ध हो। यदि यंत्र प्राप्त नही होगे, तो उपकल्पना को संचालित करने और निष्कर्ष निकालने मे कठिनाई होगी।
5. संक्षिप्तता
चूंकि उपकल्पना समस्या का सारांश होती है, अतः उसे संक्षिप्त होना चाहिए। उसकी भाषा वैज्ञानिक होनी चाहिए अन्यथा उसके शब्दों के अर्थों मे परिवर्तन की संभावना रहती है।
6. किसी सिद्धांत से सम्बंधित
उपकल्पना का चुनाव करते समय ऐसी उपकल्पना को लेना चाहिए, जिसका किसी सिद्धांत के द्वारा समर्थन किया जा चुका है। सामाजिक जीवन के सिद्धांतों के विकास के लिए उपकल्पना का अत्यंत महत्व है।
7. मार्गदर्शन मे उपयोगी
शोध कार्य प्रारंभ करने से पूर्व जिस उपकल्पना का हमने चयन किया है वह ऐसी होनी चाहिए जो वास्तव मे शोधार्य का एक निश्चित मार्ग प्रशस्त कर सके।
8. आँकड़े प्राप्त हो सके
ऐसी उपकल्पना का चुनाव करना चाहिए, जिसके प्रमाणीकरण के लिए आँकड़े पर्याप्त रूप से उपलब्ध हो। अगर उपलब्ध नही होगे, तो किसी भी सिद्धांत को प्रमाणित करना अत्यन्त ही कठिन कार्य होगा।
2.वैयक्तिक अध्ययन पद्धति की प्रक्रिया को स्पष्ट करें?
वैयक्तिक अध्ययन का अर्थ, परिभाषा और विशेषताएं
By: Kailash meena Last Updated: 2/07/2020 in: Other Education,
वैयक्तिक अध्ययन पद्धति
सामाजिक घटनाओं की प्रकृति इस प्रकार होती है कि विस्तृत अध्ययन के द्वारा उसकी वास्तविकता का पता लगाना संभव नही होता है। इसलिए उनका गहन अध्ययन करना पड़ता है। गहन अध्ययन के लिये अध्ययन की इकाइयों को सीमित संख्या मे रखना पड़ता है। इस प्रकार इस पद्धति के माध्यम से छोटे क्षेत्र के माध्यम से विशाल ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास किया जाता हैं। समाजशास्त्र में वैयक्तिक अध्ययन पद्धति का सर्वप्रथम प्रयोग लीप्ले हर्बर्ट स्पेंसर ने किया था।
आज हम इस लेख मे वैयक्तिक अध्ययन पद्धति का अर्थ, परिभाषा और वैयक्तिक अध्ययन पद्धति की विशेषताएं जानेगें।
वैयक्तिक अध्ययन पद्धति
वैयक्तिक अध्ययन का अर्थ (vaiyaktik adhyayan ka arth
वैयक्तिक अध्ययन पद्धति एक गहरी अध्ययन पद्धति है। इसके अन्तर्गत एक इकाई के विषय मे सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास होता है। वैयक्तिक अध्ययन विधि सामाजिक अनुसंधान की प्राचीन पद्धति है।
दुसरे शब्दों मे वैयक्तिक अध्ययन का अर्थ, वैयक्तिक अध्ययन पद्धति किसी व्यक्ति, संस्था या समुदाय के गहन अध्ययन से संबंधित है। इस पद्धति मे किसी एक इकाई को लेकर उसका गहराई से अध्ययन किया जाता है।
वैयक्तिक अध्ययन पद्धति का अर्थ जानने के बाद अब हम वैयक्तिक अध्ययन पद्धति की विभिन्न विद्वानों द्धारा दी गई परिभाषा को जानेंगे।
वैयक्तिक अध्ययन की परिभाषा (vaiyaktik adhyaya ki paribhasha)
गुडे एवं के शब्दों में ” वैयक्तिक अध्ययन सामाजिक तथ्यों को संगठित करने की एक ऐसी विधि है जिससे अध्ययन किये जाने वाली सामाजिक इकाई की एकात्मक प्रकृति की पूर्णतया रक्षा हो सकती है।”
सिन पाओ यंग के अनुसार “व्यक्तिगत-अध्ययन पद्धति को किसी व्यक्ति के सूक्ष्म, गहन तथा सम्पूर्ण अध्ययन के रूप मे परिभाषित किया जा सकता है, जिसमे शोधकर्ता अपनी क्षमताओं और विधियों का प्रयोग करता है।”
बीसेन्ज एवं बीसेन्ज के शब्दों में “वैयक्तिक अध्ययन गुणात्मक विश्लेषण का एक विशेष स्वरूप है जिसके अन्तर्गत किसी व्यक्ति, परिस्थिति अथवा संस्था का अत्यधिक सावधानीपूर्वक और पूर्ण अवलोकन किया जाता हैं।
गिडिंग्स के अनुसार “शोध के अन्तर्गत विषय केवल मानव प्राणी हो सकता है, या उसके जीवन का एक उपाख्यान अथवा विचारपूर्ण रूप से यह राष्ट्र, सामज्रज्य अथवा इतिहास का एक गुण हो सकता है।
वैयक्तिक अध्ययन की परिभाषा जानने के बाद अब हम वैयक्तिक अध्ययन पद्धति की विशेषताओं पर चर्चा करेंगे।
वैयक्तिक अध्ययन की विशेषताएं (vaiyaktik adhyayan paddhati ki visheshta)
वैयक्तिक अध्ययन पद्धति की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार से हैं—
1. व्यक्तिगत अध्ययन
व्यक्तिगत अध्ययन का तात्पर्य यह है कि शोधकर्ता इकाई को लेकर शोध करता है। इकाई का व्यक्तिगत स्तर मे अगल से अध्ययन किया जाता हैं। यह इकाई व्यक्ति, संस्था जाति अथवा कोई भी समुदाय हो सकता हैं।
2. ऐतिहासिक अध्ययन
इसके अन्तर्गत अध्ययन की जाने वाली इकाई का भूतकाल से वर्तमान काल तक अध्ययन होता हैं।
3. एक या कुछ इकाइयों का अध्ययन
वैयक्तिक अध्ययन एक या कुछ इकाइयों का अध्ययन होता हैं। इन इकाइयों मे व्यक्ति, परिवार, समूह या जाति आदि हो सकते हैं।
4. गहन अध्ययन
इस पद्धति की सहायता से समस्या से सम्बंधित इकाई का अति गहन सूक्ष्म अध्ययन किया जाता है। इस पद्धति मे सभी पहलुओं का गहन अध्ययन होता हैं।
5. सीमित क्षेत्र
वैयक्तिक अध्ययन पद्धति मे एक विशिष्ट इकाई का अध्ययन किया जाता है। इकाई के इस अध्ययन की प्रकृति गहन होती है।
6. गुणात्मक अध्ययन
इसके अन्तर्गत गुणात्मक अध्ययन होता है। इकाई का अध्ययन वर्णनात्मक शैली मे होता है।
7. कारकों का अध्ययन
इस पद्धति के द्वारा इकाई के उन कारको का पता लगाया जाता है, जो इसके (इकाई के) स्वरूप का निर्धारण करते है।
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