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सार्क क्षेत्र में भारत की भूमिका
टैग्स: सामान्य अध्ययन-IIस्वास्थ्यभारत और इसके पड़ोसीक्षेत्रीय समूह
प्रीलिम्स के लिये:
मेन्स के लिये:
दक्षिण एशिया क्षेत्र में भारत की भूमिका, क्षेत्रीय समूहों से संबंधित प्रश्न
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री ने COVID-19 की चुनौती से निपटने के लिये सार्क (SAARC) देशों के राष्ट्राध्यक्षों के साथ वीडियो-कॉन्फ्रेंस के माध्यम से एक बैठक का आयोजन किया।
मुख्य बिंदु:
भारतीय प्रधानमंत्री के प्रस्ताव पर 15 मार्च, 2020 को आयोजित इस बैठक में सार्क (SAARC) देशों ने COVID-19 की चुनौती से निपटने के लिये भारत की पहल का स्वागत किया।
भारतीय प्रधानमंत्री ने सामूहिक प्रयास से COVID-19 की चुनौती से निपटने के लिये एक ‘SAARC COVID-19 इमरजेंसी फंड’ स्थापित किये जाने का प्रस्ताव रखा और इस फंड के लिये भारत की तरफ से शुरुआती सहयोग के रूप में 10 मिलियन अमेरिकी डॉलर देने की घोषणा की।
इस बैठक में भारत ने सार्क देशों के विदेश सचिवों व अन्य अधिकारियों के बीच विचार-विमर्श से इस फंड के लिये रूपरेखा तैयार करने का सुझाव दिया।
सार्क (SAARC):
दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (South Asian Association for Regional Cooperation-SAARC) की स्थापना 8 दिसंबर, 1985 को ढाका (बांग्लादेश) में हुई थी।
विश्व की कुल आबादी के लगभग 21% लोग सार्क देशों में रहते हैं।
सार्क की स्थापना के समय इस संगठन में क्षेत्र के 7 देश (भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, मालदीव और श्रीलंका) शामिल थे।
अफगानिस्तान वर्ष 2007 में इस संगठन में शामिल हुआ।
सार्क की असफलता के कारण:
दक्षिण एशिया विश्व का सबसे असंगठित क्षेत्र है, सार्क देशों के बीच आपसी व्यापार उनके कुल व्यापार का मात्र 5% ही है।
वर्ष 2006 में सार्क देशों के बीच व्यापार को बढ़ावा देने के लिये किया गया ‘दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र’ (South Asian Free Trade Area-SAFTA) समझौता वास्तविकता में बहुत सफल नहीं रहा है।
सार्क समूह की अंतिम/पिछली बैठक वर्ष 2014 में नेपाल में आयोजित की गई थी।
भारत के उरी क्षेत्र में हुए आतंकवादी हमले के बाद वर्ष 2016 में इस्लामाबाद (पाकिस्तान) में प्रस्तावित सार्क के 19वें सम्मेलन को रद्द कर दिया गया था। इसके बाद से सार्क के किसी सम्मेलन का आयोजन नहीं किया गया है।
हाल के वर्षों में बिम्सटेक (BIMSTEC) में भारत की बढ़ती गतिविधियों के बाद सार्क के भविष्य पर प्रश्न उठने लगा था।
विशेषज्ञों के अनुसार, भारत-पाकिस्तान संघर्ष इस समूह की असफलता का एक बड़ा कारण है।
भारत के लिये ऐसी स्थिति में पाकिस्तान के साथ सामान्य व्यापार को बढ़ावा देना बहुत कठिन है जब यह सर्वविदित है कि पाकिस्तान आतंकवाद को संरक्षण देता है, जबकि पाकिस्तान समूह में उन सभी प्रस्तावों का विरोध करता है जिसमें उसे भारत का थोड़ा सा भी लाभ दिखाई देता है।
COVID-19 महामारी और सार्क देश:
लगभग सभी सार्क देशों की एक बड़ी आबादी निम्न आय वर्ग से आती है और ज़्यादातर मामलों में इन समूहों तक पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुँच नहीं है।
साथ ही ऐसे क्षेत्रों में COVID-19 जैसी संकरामक बीमारियों के बारे में जन-जागरूकता का अभाव इस चुनौती को और बढ़ा देता है।
बांग्लादेश, भूटान और नेपाल जैसे देशों के साथ भारत खुली सीमा (Open Border) साझा करता है, ऐसे में यह संक्रमण बहुत ही कम समय में अन्य देशों में भी फैल सकता है।
सार्क देशों में COVID-19 के प्रसार से स्वास्थ्य के साथ अन्य क्षेत्रों (व्यापार, उद्योग पर्यटन आदि) को भी भारी क्षति होगी, ऐसे में सामूहिक प्रयासों से क्षेत्र में COVID-19 के प्रसार को रोकना बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।
वर्तमान में विश्व के किसी भी देश में COVID-19 के उपचार की दवा की खोज नहीं की जा सकी है, ऐसे में इस इस बीमारी से निपटने का सबसे सफल उपाय जागरूकता,बचाव और संक्रमित लोगों/क्षेत्रों से बीमारी के प्रसार को रोकना है।
क्षेत्र में भारत ही ऐसा देश है जो इस परिस्थिति में बड़ी मात्रा में जाँच, उपचार और चिकित्सीय प्रशिक्षण के लिये कम समय में आवश्यक मदद उपलब्ध करा सकता है।
नेतृत्व का अवसर:
भारत सार्क के सभी देशों के साथ सीमाओं के अलावा भाषा,धर्म और संस्कृति के आधार पर जुड़ा हुआ है।
भारतीय प्रधानमंत्री ने वर्ष 2014 में अपने शपथ ग्रहण समारोह में सार्क राष्ट्राध्याक्ष्यों को निमंत्रण देने के साथ ही भारत के लिये सार्क के महत्व को स्पष्ट किया था।
भारत पर कई बार ये आरोप लगे हैं कि भारत अपनी मज़बूत स्थिति का उपयोग कर क्षेत्र के देशों पर अपना वर्चस्व कायम रखना चाहता है।
मालदीव, नेपाल, अफगानिस्तान आदि जैसे देश जहाँ पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं, भारत इन देशों को आवश्यक मदद प्रदान कर सकता है।
वर्तमान के अनिश्चिततापूर्ण वातावरण में भारत के लिये एक ज़िम्मेदार पड़ोसी के रूप में अपनी नेतृत्व क्षमता का प्रदर्शन कर क्षेत्र के देशों के बीच अपनी एक सकारात्मक छवि प्रस्तुत करने का यह महत्त्वपूर्ण अवसर है।
सार्क और भारत (SAARC and India):
दक्षिण एशिया क्षेत्र में सार्क सामूहिक आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक प्रभावी माध्यम बन सकता है । इसकी कार्यसूची में हाल ही में आर्थिक सहयोग से सम्बद्ध जो मसले शामिल किए गए हैं उनसे एक रचनात्मक तरीके से इस क्षेत्र की सम्पूरकताओं से लाभ उठाया जा सकता है, यदि सभी सदस्य देश सचेत होकर इस कार्यसूची पर कार्यवाही करें । भारत सार्क के प्रति प्रतिबद्ध है और सार्क के सभी सदस्य राज्यों के सामूहिक लाभ के लिए इस संघ को सुदृढ़ बनाना चाहता है ।
भारत सार्क संगठन से सम्बन्धित विभिन्न गतिविधियों में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता रहा है । सार्क शिखर सम्मेलन की सिफारिशें भारत एवं अन्य सदस्य देशों द्वारा संयुक्त रूप से क्रियान्वित की गयीं और उसने अपने संसाधन एवं सामर्थ्य के अनुकूल उनकी सफलता में सर्वोत्तम सम्भव तरीके से योगदान किया ।
कोलम्बो शिखर सम्मेलन के निर्देशों के अनुपालन में भारत ने पर्यावरण के मसले पर सार्क मन्त्रिमण्डलीय बैठक का नई दिल्ली में 1992 में आयोजन किया । सार्क के तत्वावधान में सन् 1994 में लगभग 58 क्रियाकलाप सम्पन्न हुए । इनमें विशेष प्रशिक्षण पाठक्रम संगोहिया बैठकें कार्यशालाएं संयुक्त अनुसन्धान परियोजनाएं, तकनीकी अध्ययन, आदि शामिल हैं ।
कुल क्रियाकलापों के लगभग एक-तिहाई कार्यक्रम भारत में सम्पन्न हुए । सार्क का झुकाव आर्थिक सहयोग पर्यावरण गरीबी उन्मूलन, आदि प्रमुख क्षेत्रों में ठोस विकासोन्मुख विचार-विमर्श की ओर है । चूंकि भारत सार्क देशों के बीच सामूहिक आत्मनिर्भरता के प्रति वचनबद्ध है इसलिए उसने उसके मंच पर सदैव इस बात का समर्थन किया है कि क्षेत्र में उपलब्ध संसाधनों का इसके कार्यों और क्रियाकलापों के लिए उपयोग किया जाए ।
वर्ष 1986-87, 1996-97 तथा 2007-08 के लिए भारत सार्क का अध्यक्ष रहा । प्रथम सार्क व्यापार मेला जनवरी 1996 में नई दिल्ली में सम्पन्न हुआ । सभी सार्क देशों के व्यावसायिक समुदायों के हित का उल्लेख करते हुए सार्क वाणिज्य और उद्योग मण्डल ने नई दिल्ली में 19 से 21 नवम्बर, 1996 तक अग्रगामी बहुआयामी सार्क आर्थिक सहयोग सम्मेलन का आयोजन किया ।
भारत ने 14 से 16 अक्टूबर, 1996 तक नई दिल्ली में प्रौढ़ साक्षरता तथा अनवरत शिक्षा कार्यक्रमों के क्षेत्र में कार्यरत स्वयंसेवी संगठनों का सार्क सम्मेलन आयोजित किया । सम्मेलन ने एक घोषणा पारित की जिसमें दक्षिण एशिया के गैर-सरकारी संगठनों और स्वयंसेवी संगठनों के बीच सहयोग का संवर्धन करने के सम्बन्ध में विशिष्ट सिफारिशें की गई थीं ।
सीमा शुल्क सहयोग से सम्बन्धित सार्क युप की तीसरी बैठक 24 से 26 अगस्त, 1998 तक जयपुर में हुई । बहुभाषी और बहुमीडिया सूचना प्रौद्योगिकी पर 1-4 सितम्बर, 1998 तक पुणे में सार्क शिखर सम्मेलन हुआ । दसवें सार्क शिखर सम्मेलन (जुलाई, 1998) में अपने बाजार मे प्रवेश बढ़ाने के लिए भारत ने महत्वपूर्ण पहल की ।
प्रधानमन्त्री वाजपेयी ने घोषणा की कि भारत 1 अगस्त, 1998 से सार्क देशों के लिए मात्रात्मक प्रतिबन्ध हटा लेगा । इसमें सार्क देशों के लिए 2000 से अधिक उलादों को मुक्त सामान्य लाइसेन्स के अन्तर्गत रखना शामिल है । प्रधानमंत्री ने यह भी घोषणा की कि त्थर मार्ग प्रक्रिया के अन्तर्गत सार्क देशों में भारत के विदेशी निवेश के लिए 80 लाख से 150 मिलियन अमरीकी डॉलर कर दिया जाएगा ।
11 वें सार्क शिखर सम्मेलन (5-6 जनवरी, 2002) का आयोजन अन्तत: ऐसे समय में हुआ जब भारत एवं पाकिस्तान के पारस्परिक सम्बन्धों में गम्भीर तनाव की स्थिति चरम अवस्था में थी । सार्क आन्दोलन को गतिशील बनाने पर बल देते हुए प्रधानमन्त्री वाजपेयी ने कहा कि, यह आवश्यक है कि आर्थिक एजेंडे को सार्क में सर्वोपरि माना जाए ।
क्षेत्र के देशों के बीच व्यापार संवर्द्धन तथा सार्क द्वारा गठित गरीबी उन्मूलन आयोग को पुन: सक्रिय करने के लिए भारत की ओर से हर सम्भव सहायता की पेशकश भी उन्होंने की । भारत ने दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ (दक्षेस) के कार्यक्रमों और उद्देश्यों की पूर्ति की दिशा में 4 जनवरी, 2004 को सहयोग की छह ठोस पेशकश की ।
दक्षेस की बारहवीं शिखर बैठक के उद्घाटन सत्र में प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ये पेशकश की:
i. दक्षेस देशों में गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम आगे बढ़ाने के लिए गरीबी उन्मूलन कोष बनाया जाए । भारत इसके लिए दस करोड़ डॉलर देगा और यह राशि भारत को छोड़कर दक्षेस के अन्य देशों में खर्च की जाएगी ।
ii. दक्षेस के स्वायत्त गरीबी उन्मूलन आयोग की सिफारिशों के कार्यान्वयन के लिए पूर्ण प्रतिबद्ध कार्यदल का गठन किया जाए । भारत इसका खर्च उठाने को तैयार है और आवश्यकता होने पर कार्यदल की मेजबानी के लिए भी तैयार है ।
iii. संयुक्त राष्ट्र संघ ने 2015 तक विकास लक्ष्य प्राप्त करने पर कार्यक्रम रखा है । दक्षेस का उद्देश्य इन्हें 2010 तक पूरा करने का होना चाहिए । भारत इसके लिए विशेष दक्षेस दल को सहायता देगा और विशेष रूप से इस कार्यक्रम में पिछड़ने वाले दक्षेस देशों को सहायता दी जाएगी ।
iv. दक्षेस देशों के बीच रेल सड़क वायु एवं जलमार्ग परिवहन व्यवस्था मजबूत करने के लिए दक्षेस कार्यदल का गठन किया जाए । भारत इसके लिए पूरा योगदान देगा और कार्यदल द्वारा की गई सिफारिशों को लागू करेगा ।
v. सूचना प्रौद्योगिकी जैव तकनीक एवं विज्ञान के क्षेत्र में भारत अपना अनुभव और ज्ञान दक्षेस देशों के साथ बांटने को तैयार है ।
vi. प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के 150 वर्ष पूरे होने के अवसर पर 2007 में भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश ने संयुक्त रूप से समारोह मनाया ।
सार्क राष्ट्रों के पारस्परिक आर्थिक सम्बन्धों में एक नया मोड़ 1 जनवरी, 2006 से उस समय आया जब इन देशों का आपसी स्वतन्त्र व्यापार समझौता ‘साफ्टा’ प्रभावी हो गया । साफ्टा के लिए सार्क राष्ट्रों ने जनवरी, 2004 में इस्लामाबाद में हस्ताक्षर किये थे ।
साफ्टा का मूल उद्देश्य इसके सदस्य राष्ट्रों के बीच आपसी व्यापार में प्रशुल्क स्तर को वर्ष 2016 तक 5 प्रतिशत से कम करना है । भारत ने पाकिस्तान व श्रीलंका जैसे क्षेत्र के मजबूत देशों के मामले में 884 वस्तुओं और कम विकसित देशों नेपाल, भूटान, बांग्लादेश व मालदीव के लिए 763 उत्पादों की सूची बनायी है । सूची में शामिल वस्तुओं का व्यापार साफ्टा के व्यापार उदारीकरण कार्यक्रम के अन्तर्गत नहीं किया जा सकेगा ।
दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार करार के अक्षरश: समग्र कार्यान्वयन के लिए प्रशंसनीय प्रगति हुई है । सदस्य देशों ने 1 जनवरी, 2008 से एलडीसी को जीरो ड्यूटी पहुंच प्रदान करने तथा एलडीसी के सम्बन्ध में इसकी नकारात्मक सूची को 744 से 480 तक एकतरफा कम करने के भारत के निर्णय की प्रशंसा की है । भारत अपनी संवेदनशील सूची को निरन्तर संशोधित करता रहता है तथा एलडीसी हेतु 740 तथा गैर एलडीसी हेतु 868 मदें इसकी परिधि से बाहर हैं ।
सार्क के 14वें शिखर सम्मेलन की मेजबानी भारत को सौंपी गई और यह सम्मेलन 3-4 अप्रैल, 2007 को आयोजित किया गया । यह तीसरा अवसर था जब सार्क शिखर सम्मेलन का आयोजन भारत में हुआ । भारत की ओर से क्षेत्र के अल्पविकसित देशों के लिए शुल्क मुक्त व्यवस्था की एकतरफा घोषणा सम्मेलन की प्रमुख उपलब्धि रही ।
पारस्परिक व्यापार संवर्द्धन के लिए सीमा शुल्कों में कटौती की दिशा में आगे बढ़ते हुए 17वें सार्क शिखर सम्मेलन (नवम्बर, 2011) में कम विकसित देशों के लिए साफ्टा के अन्तर्गत भारत ने संवेदनशील उत्पादों की सूची को 480 से घटाकर 25 करने की घोषणा की ।
इससे हटायी गयी वस्तुओं का अब शुल्क मुक्त आयात इन देशों से किया जा सकेगा । भारत के प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह द्वारा सोलहवीं थिम्पू सार्क शिखरवार्ता के दौरान सार्क के सबसे कम विकसित देशों (अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान और नेपाल) के छात्रों के लिए घोषित ‘सार्क इण्डिया सिल्वर जुबली स्कॉलरशिप्स’ के अन्तर्गत 50 छात्रवृत्तियां प्रदान करने की घोषणा की । 10-11 नवम्बर, 2011 में मालदीव में आयोजित सत्रहवीं सार्क शिखरवार्ता के दौरान प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने इन छात्रवृतियों की संख्या 50 से बढ़ाकर 100 कर दी ।
प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने 26-27 नवम्बर, 2014 को काठमाण्डू में आयोजित 18वें सार्क शिखर सम्मेलन में सार्क देशों को समर्पित उपग्रह 3-5 वर्षों के लिए बिजनेस वीजा तथा सार्क व्यावसायियों के लिए बिजनेस ट्रेवलर कार्ड, तत्काल चिकित्सा वीजा के प्रावधान सहित कई एक पक्षीय पहलकदमियों की घोषणा की ।
भारत सार्क का एकमात्र सदस्य है, जिसने ‘सार्क विकास निधि’ (SDF) में 189.9 मिलियन अमरीकी डॉलर की अपनी पूर्ण प्रतिबद्धता अन्तरित की है । नई दिल्ली में दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय की स्थापना से उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सहयोग के नए आयाम को छूने की आशा है । विश्वविद्यालय को पूर्णरूप से कार्यात्मक करने की कुल लागत मिलियन अमरीकी डॉलर होगी, भारत इस परियोजना में 229.11 मिलियन अमरीकी डॉलर का योगदान दे रहा है ।
सार्क क्षेत्र में लोगों में आपस में गतिविधियों में क्रमिक वृद्धि हुई है । भारत ने नई दिल्ली में द्वितीय सार्क बैण्ड उत्सव, आगरा में सार्क साहित्य उत्सव तथा चण्डीगढ़ में द्वितीय सार्क लोकगीत उत्सव की सफलतापूर्वक मेजबानी की ।
संक्षेप में, भारत सार्क में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है और यह आशा करता रहा है कि क्षेत्र के देशों के मध्य आर्थिक, सामाजिक, तकनीकी, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक विकास के लिए एक प्रभावी साधन के रूप में इसका विकास हो जैसा कि इसके चार्टर के अधीन अपेक्षा की जाती है ।
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