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Gulzar Birthday: Some beautiful Shayaris by Gulzar | FilmiBeat

गुलज़ार साहब के बेस्ट गीत
तुम जो कह दो तो आज की रात चांद डूबेगा नहीं
रात को रोक लो
रात की बात है और ज़िंदगी बाकी तो नहीं
तेरे बिना ज़िंदगी से कोई शिकवा तो नहीं
तेरे बिना ज़िंदगी भी लेकिन ज़िंदगी तो नहीं

गुलज़ार साहब के बेस्ट गीत
आ नींद का सौदा करें
एक ख़्वाब दें, एक ख़्वाब लें
इक ख़्वाब तो आंखों में है
एक चांद की तकिए तले
कितने दिनों से ये आसमां भी सोया नहीं है
इसको सुला दें

गुलज़ार साहब के बेस्ट गीत
फरवरी की सर्दियों की धूप में
मूंदी मूंदी अंखियों से देखना
हाथ की आड़ से
निम्मी निम्मी ठंड और आग में
हौले हौले मारवा की राग में
मीर की बात हो

गुलज़ार साहब के बेस्ट गीत
छोड़ आए हम वो गलियां
जहां तेरे पैरों के कंवल गिरा करते थे
हंसे तो दो गालों में भंवर पड़ा करते थे
तेरी कमर के बल पे नदी मुड़ा करती थी
हंसी तेरी सुन सुन के फसल पका करती थी
छोड़ आए हम वो गलियां

गुलज़ार साहब के बेस्ट गीत
एक बार वक्त से
लम्हा गिरा कहीं
वो दास्तां मिली
लम्हा कहीं नहीं
थोड़ा सा हंसा के
थोड़ा सा रूला के
पल ये भी जाने वाला है
आने वाला पल जाने वाला है
हो सके तो इसमें ज़िंदगी बिता दो
पल जो ये जाने वाला है

गुलज़ार साहब के बेस्ट गीत
जीने के लिए सोचा ही नहीं
दर्द संभालने होंगे
मुस्कुराएं तो मुस्कुराने के
कर्ज़ उतारने होंगे
मुस्कुराऊं कभी तो लगता है
जैसे होठों पर कर्ज़ रखा है
तुझसे नाराज़ नहीं ज़िंदगी हैरान हूं मैं
तेरे मासूम सवालों से परेशान हूं मैं

गुलज़ार साहब के बेस्ट गीत
एक अकेली छतरी में जब आधे आधे भीग रहे थे
आधे सूखे, आधे गीले
सूखा तो मैं ले आई थी
गीला मन शायद, बिस्तर के पास पड़ा हो
वो भिजवा दो, मेरा वो सामान लौटा दो
एक सौ सोलह चांद की रातें
एक तुम्हारे कांधे का तिल
गीली मेहंदी की खुशबू,
झूठमूठ के शिकवे कुछ
झूठमूठ के वादे भी,
सब याद करा दो
सब भिजवा दो, मेरा वो सामान लौटा दो

गुलज़ार साहब के बेस्ट गीत
थका थका सूरज जब नदी से होकर निकलेगा
हरी हरी क़ाई पे पांव पड़ा तो फिसलेगा
तुम रोक के रखना मैं जाल गिराऊं
तुम पीठ पे लेना मैं हाथ लगाऊं
ओ साथी रे दिन डूबे ना
आ चल दिन को रोकें
रात के पीछे दौड़ें
छांव छुए ना

गुलज़ार साहब के बेस्ट गीत
ख़्वाब से बोझ से कंपकंपाती हुईं
हल्की पल्कें तेरी याद आता है सब
तुझे गुदगुदाना सताना यूं ही सोते हुए
गाल पर टीपना मीचना बेवजह बेसबब
याद है पीपल के जिसके घने साए थे
हमने गिलहरी के जूठे मटर खाए थे
ये बरकत उन हज़रत की है
पहली बार मोहब्बत की है
आखिरी बार मोहब्बत की है

गुलज़ार साहब के बेस्ट गीत
ऐसी उलझी नज़र उनसे हटती नहीं
दांत से रेशमी डोर कटती नहीं
उम्र कब की बरस के सफेद हो गई
कारी बदरी जवानी की छटती नहीं
वल्लाह ये धड़कन बढ़ने लगी है
चेहरे की रंगत उड़ने लगी है
डर लगता है तन्हा सोने में जी
दिल तो बच्चा है जी
Source By:-hindi.filmibeat.com